पीएसयू और बैंकिंग सेक्टर में आरक्षण को लेकर मोदी सरकार ने बड़ा फैसला किया है. अब पब्लिक सेक्टर कंपनियों (PSU) और सरकारी वित्तीय संस्थानाओं ( सरकारी बैंक और बीमा कंपनियां ) में काम करने वाले ओबीसी अधिकारियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा. अबतक ये लाभ उनके बच्चों को मिलता रहा है. मोदी सरकार ने आज ये अहम फ़ैसला लिया है. फ़ैसले का मक़सद आरक्षण का लाभ इन संस्थानों में छोटे पदों पर काम कर रहे ओबीसी कर्मचारियों तक पहुंचाना है.
मोदी सरकार ने आज कैबिनेट की बैठक में
सरकारी पदों की ग्रुप ‘ ए ‘ सेवा के समतुल्य पब्लिक सेक्टर कंपनियों और
बैंकों में भी अधिकारियों का एक वर्ग बनाने को मंज़ूरी दे दी. अब पब्लिक
सेक्टर कंपनियों में एग्जिक्युटिव स्तर के सभी पद जैसे बोर्ड स्तर के
एग्जिक्युटिव और मैनेजर स्तर के पदों को सरकार के ग्रुप ‘ए’ सेवा के
समतुल्य माने जाएंगे.
वहीं सरकारी बैंकों और बीमा एवं वित्तीय
कंपनियों में जूनियर प्रबंधन ग्रेड स्केल-1 और उसके ऊपर स्तर के अधिकारी
भारत सरकार के ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के समकक्ष माने जाएंगे. इन पदों पर
बैठे अधिकारी अब क्रीमी लेयर के तहत माने जाएंगे जिसके चलते उनके बच्चों को
आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा.
देशभर में क़रीब 300 पब्लिक सेक्टर की
कंपनियां हैं जिनमें एनटीपीसी (NTPC), ओएनजीसी (ONGC), सेल (SAIL), भेल
(BHEL), आईओसी (IOC) और कोल इंडिया (COAL INDIA) जैसी कंपनियां शामिल हैं.
वहीं सरकारी वित्तीय संस्थानों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया,
बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक जैसे सरकारी बैंक और एलआईसी जैसी
सरकारी बीमा कंपनियां शामिल हैं.
क्यों हुआ ये फ़ैसला?
दरअसल मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी केस में फ़ैसला सुनाते हुए सरकार को निर्देश दिया था कि ओबीसी के अंदर सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को आरक्षण की परिधि से बाहर का एक फॉर्मूला बनाया जाए. इसके बाद सरकार की एक विशेषज्ञ कमिटी ने क्रीमी लेयर का फॉर्मूला तैयार किया था. इस फॉर्मूला के तहत क्रीमी लेयर के छह पैमाने बनाए गए जिनमें आय के अलावा पद को भी शामिल किया गया.
दरअसल मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी केस में फ़ैसला सुनाते हुए सरकार को निर्देश दिया था कि ओबीसी के अंदर सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को आरक्षण की परिधि से बाहर का एक फॉर्मूला बनाया जाए. इसके बाद सरकार की एक विशेषज्ञ कमिटी ने क्रीमी लेयर का फॉर्मूला तैयार किया था. इस फॉर्मूला के तहत क्रीमी लेयर के छह पैमाने बनाए गए जिनमें आय के अलावा पद को भी शामिल किया गया.
केंद्र और राज्य सरकारों के तहत आने वाले
ग्रुप ‘ए’ और ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को क्रीमी लेयर के तहत माना गया
जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. लेकिन 24 साल बीतने के बाद भी पब्लिक
सेक्टर कंपनियों और सरकारी वित्तीय संस्थानों में सरकारी सेवा के ग्रुप ए
और बी का समकक्ष अभी तक निर्धारित नहीं किया गया था. जिसके चलते इन
संस्थानों में काम कर रहे अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिल रहा
था. आज मोदी सरकार ने इस विसंगति को दूर कर दिया है.