डोकलाम पर मोदी की पहल से चौंका था चीन, जिनपिंग से अचानक मिले थे: दावा

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डोकलाम विवाद के हल का मंच हैम्बर्ग (जर्मनी) में ही तैयार हो गया था। नरेंद्र मोदी ने हैम्बर्ग में G-20 समिट से इतर शी जिनपिंग से अचानक मुलाकात कर विवाद को हल करने की पहल की थी। मोदी की ऐसी पहल से चीनी स्टाफ चौंक गया था। एक नई बुक में ये दावा किया गया है। बता दें कि सिक्किम के डोकलाम में 16 जून को शुरू हुआ गतिरोध 72 दिनों के बाद तब थम गया था, जब दोनों देश अपनी सैनिकों को वहां से हटाने पर रजामंद हुए थे।

 मोदी ने बिना किसी पूर्व घोषणा के जिनपिंग से की थी मुलाकात...

- न्यूज एजेंसी के मुताबिक बुक 'सिक्योरिंग इंडिया द मोदी वे' में कहा गया है कि जानकारों के मुताबिक मोदी ने बिना किसी पूर्व घोषणा के हैम्बर्ग में जिनपिंग से लॉन्ज में अनौपचारिक मुलाकात की थी, ऐसा कर मोदी ने तभी डोकलाम विवाद के कूटनीतिक हल का मंच तैयार कर दिया था।
- डोकलाम विवाद के दौरान हैम्बर्ग में मोदी-जिनपिंग के बीच ये मुलाकात 7 जुलाई को हुई थी। तब विदेश मंत्रालय ने कहा था कि दोनों लीडर्स के बीच कई मुद्दों पर बातचीत हुई। जबकि चीन के ऑफिशियल्स ने उस वक्त दोनों नेताओं के बीच किसी बाइलेट्रल बातचीत से इनकार किया था।
- G-20 समिट से पहले चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री की तरफ से 6 जुलाई को बयान जारी कर कहा गया था, "मोदी और जिनपिंग की बाइलेट्रल मीटिंग नहीं होगी। इसके लिए माहौल सही नहीं है।"
 
चीनी ऑफिशियल्स चौंक गए थे
- बुक में कहा गया है कि चीन के प्रेसिडेंट जिनपिंग से मुलाकात की पहल मोदी ने की थी। इंडियन डिप्लोमैट्स अचानक हुई इस मीटिंग के गवाह थे। हालांकि मोदी की पहल से चीन के ऑफिशियल्स चौंक गए थे।
- "थोड़ी देर के लिए हुई इस मुलाकात के दौरान मोदी ने जिनपिंग से कहा था कि दोनों देशों के स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव्स- अजीत डोभाल (इंडिया के एनएसए) और बीजिंग के स्टेट काउंसलर यांग जिची को डोकलाम गतिरोध को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। मोदी ने जिनपिंग से ये भी कहा था कि हमारे सामरिक संबंध, डोकलाम जैसे छोटे सामरिक मुद्दों से कहीं ज्यादा बड़े हैं। इस मुलाकात के बाद ही डोभाल ब्रिक्स NSAs की मीटिंग में शामिल हुए थे।"
- इस बुक को वाइस प्रेसिडेंट एम वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को लॉन्च किया। इसे स्ट्रैटजिक अफेयर्स एक्सपर्ट नितिन ए गोखले ने लिखा है।
 
गतिरोध के दौरान 38 मीटिंग हुईं
- बुक के मुताबिक डोकलाम गतिरोध के दौरान दोनों देशों के बीच कम से कम 38 मीटिंग हुईं। भारत की तरफ से इसकी अगुआई चीन में एम्बेसडर विजय गोखले ने की। भारतीय टीम को पीएम मोदी की तरफ से नई दिल्ली की रेड लाइन को लेकर क्लीयर इंस्ट्रक्शन थे। टीम को बता दिया गया था कि भारत जमीन पर मजबूती से डटा रहेगा और इस मसले के हल के लिए डिप्लोमैसी ही सबसे सही रास्ता है।
 
क्या था डोकलाम विवाद?
- चीन सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क बना रहा था। यह घटना जून में सामने आई थी। डोकलाम के पठार में ही चीन, सिक्किम और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। भूटान और चीन इस इलाके पर दावा करते हैं। भारत भूटान का साथ देता है। भारत में यह इलाका डोकलाम और चीन में डोंगलाेंग कहलाता है।
- चीन ने 16 जून से यह सड़क बनानी शुरू की थी। भारत ने विरोध जताया तो चीन ने घुसपैठ कर दी थी। चीन ने भारत के दो बंकर तोड़ दिए थे।
- दरअसल, सिक्किम का मई 1975 में भारत में विलय हुआ था। चीन पहले तो सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार करता था। लेकिन 2003 में उसने सिक्किम को भारत के राज्य का दर्जा दे दिया। हालांकि, सिक्किम के कई इलाकों को वह अब भी अपना बताता है।
 
72 दिन में टकराव कितना बढ़ा?
- चीन ने अपने विदेश मंत्रालय और सरकारी मीडिया के जरिए भारत को कई धमकियां दीं। हालांकि, भारत की तरफ से संयमित बयान दिए गए। सुषमा स्वराज ने संसद में कहा कि बातचीत से ही इस मसले का हल निकलेगा।
- इसी बीच, 15 अगस्त को चीन के कुछ सैनिकों ने लद्दाख की पेंगगोंग लेक के करीब भारतीय इलाके में घुसपैठ की कोशिश की। भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को रोकने की कोशिश की। इसे लेकर दोनों देशों के सैनिकों के बीच पहले हाथापाई हुई। इसके बाद मामला पत्थरबाजी तक पहुंच गया।
- इस घटना के बाद माना गया कि दोनों देशों के बीच टकराव और बढ़ेगा, लेकिन डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए डोकलाम विवाद 72 दिन बाद सुलझ गया।