कहते है कि किसी इंसान का अपमान उसकी जिंदगी
बदल सकता है। कई लोग इस अपमान का बदला लेने के लिए उस व्यक्ति का बुरा
चाहने लगते है और सकारात्मक सोच वाले लोग इस अपमान का बदला लेने के लिए खुद
को साबित करके लोगों की बोलती बंद करते हैं। गोविंद जायसवाल उन्हीं में से
एक हैं। बचपन से ही गोविंद ये सुनकर बड़े हुए थे कि एक रिक्शेवाला अपने
बेटे को IAS कैसे बना सकता है। अपने पिता के लिए ऐसे शब्द गोविंद को तीर की
तरह चुभते थे। उन्हें अपने पिता का संघर्ष और लोगों को मजाक उड़ाना बहुत
बुरा लगता था। यह सब देखकर उन्होंने अपने मन मे ठान लिया था कि वह अपने
परिवार को अब एक सम्मानजनक जीवन देंगे, लेकिन उन घर में और आसपास जो माहौल
था उसे देखते हुए सिविल सर्विस की तैयारी करना बहुत कठिन था। लेकिन गोविंद
रात-रात भर जागकर पढ़ते थे। वहीं घर वालों की भी जिद थी कि वो गोविंद को
IAS बनाकर ही मानेंगे।
घर वालों ने जमीन बेचकर दिए पैसे
इन सब के बावजूद उन्होंने ठान लिया था कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे और इसी में कुछ करके दिखाएंगे। उनके पास पैसे नहीं थे कि जिससे वह कोई बिजनेस या काम धंधा कर सकें ऐसे में उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प था कि खूब पढ़ाई करें और यूपीएससी की परीक्षा पास करें। गोंविद के लिए सपनों को पूरा करना बेदह मुश्किल था। वह जिस एक कमरे के घर में रहते उसमें उनका पूरा परिवार रहता था। उनका घर शहर से कुछ दूरी पर था और यहां पर लाइट की कटौती भी खूब होती। लिहाजा रात में उन्हें ढिबरी या मोमबत्ती के सहारे पढ़ाई करनी पड़ती। गोविंद को कोचिंग के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी तो उनके पिता ने अपनी पुश्तैनी जमीन 30000 रुपए में बेच दी थी। लेकिन इससे भी उनका काम नहीं चला तो गोविंद पार्ट टाइम कुछ बच्चों को मैथ का ट्यूशन देने लगे।
घर वालों ने जमीन बेचकर दिए पैसे
इन सब के बावजूद उन्होंने ठान लिया था कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे और इसी में कुछ करके दिखाएंगे। उनके पास पैसे नहीं थे कि जिससे वह कोई बिजनेस या काम धंधा कर सकें ऐसे में उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प था कि खूब पढ़ाई करें और यूपीएससी की परीक्षा पास करें। गोंविद के लिए सपनों को पूरा करना बेदह मुश्किल था। वह जिस एक कमरे के घर में रहते उसमें उनका पूरा परिवार रहता था। उनका घर शहर से कुछ दूरी पर था और यहां पर लाइट की कटौती भी खूब होती। लिहाजा रात में उन्हें ढिबरी या मोमबत्ती के सहारे पढ़ाई करनी पड़ती। गोविंद को कोचिंग के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी तो उनके पिता ने अपनी पुश्तैनी जमीन 30000 रुपए में बेच दी थी। लेकिन इससे भी उनका काम नहीं चला तो गोविंद पार्ट टाइम कुछ बच्चों को मैथ का ट्यूशन देने लगे।
बेटे की पढ़ाई के लिए चलाया रिक्शा
गोविंद के जीजी राजेश ने बताया, ''मेरी शादी गोविंद की बड़ी बहन ममता से 1998 में हुई। उस समय गोविंद 11वीं में पढ़ रहे थे। 1995 में गोविंद की मां की बीमारी से मौत हो गई थी।'' बड़ी बहन निर्मला की शादी 1984 में हो गई थी। छोटी बहन गीता की शादी 2002 में हुई थी। पिता नारायण के पास साल 1995 में करीब 35 रिक्शे थे। पत्नी की बीमारी में उन्होंने 20 रिक्शे बेच दिए। इसके बाद कुछ बेटियों की शादी के लिए बेच दिए। 2004-05 में गोविंद को सिविल की तैयारी और दिल्ली भेजने के लिए बाकी रिक्शे बेच डाले। पढ़ाई में कमी न हो, इसलिए एक रिक्शा वो खुद चलाने लगे। 2006 में पैर में टिटनेस हो गया, लेकिन ये बात उन्होंने गोविंद को नहीं बताई। बहन गीता और ममता बारी-बारी पिता का ख्याल रखने को उनके पास रहती थीं। एक रिक्शा बचा था, जिसे चलाकर वह गोविंद का खर्च भेजते थे। गोविंद ने सोच लिया था कि एक दिन वो कुछ ऐसा करेंगे कि लोगों को इसी रिक्शेवाले के बेटे पर गर्व हो। साल 2006 गोविंद ने पहली बार IAS की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में गोविंद जायसवाल ने IAS परीक्षा में 48 वां रैंक हासिल किया था। हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों की श्रेणी में वह टॉपर रहे थे। 32 साल के गोविंद फिलहाल ईस्ट दिल्ली एरिया के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं।
गोविंद ने आईएएस बनकर पिता नारायण का सपना पूरा किया और 2012 -13 में एक मकान बृज इंक्लेव में उन्हें दिया, लेकिन गोविंद का परिवार आज भी किराए के मकान का किराया लकी मानकर भरता है, जहां पिता और गोविंद ने बचपन काटा था।
गोविंद के जीजी राजेश ने बताया, ''मेरी शादी गोविंद की बड़ी बहन ममता से 1998 में हुई। उस समय गोविंद 11वीं में पढ़ रहे थे। 1995 में गोविंद की मां की बीमारी से मौत हो गई थी।'' बड़ी बहन निर्मला की शादी 1984 में हो गई थी। छोटी बहन गीता की शादी 2002 में हुई थी। पिता नारायण के पास साल 1995 में करीब 35 रिक्शे थे। पत्नी की बीमारी में उन्होंने 20 रिक्शे बेच दिए। इसके बाद कुछ बेटियों की शादी के लिए बेच दिए। 2004-05 में गोविंद को सिविल की तैयारी और दिल्ली भेजने के लिए बाकी रिक्शे बेच डाले। पढ़ाई में कमी न हो, इसलिए एक रिक्शा वो खुद चलाने लगे। 2006 में पैर में टिटनेस हो गया, लेकिन ये बात उन्होंने गोविंद को नहीं बताई। बहन गीता और ममता बारी-बारी पिता का ख्याल रखने को उनके पास रहती थीं। एक रिक्शा बचा था, जिसे चलाकर वह गोविंद का खर्च भेजते थे। गोविंद ने सोच लिया था कि एक दिन वो कुछ ऐसा करेंगे कि लोगों को इसी रिक्शेवाले के बेटे पर गर्व हो। साल 2006 गोविंद ने पहली बार IAS की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में गोविंद जायसवाल ने IAS परीक्षा में 48 वां रैंक हासिल किया था। हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों की श्रेणी में वह टॉपर रहे थे। 32 साल के गोविंद फिलहाल ईस्ट दिल्ली एरिया के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं।
गोविंद ने आईएएस बनकर पिता नारायण का सपना पूरा किया और 2012 -13 में एक मकान बृज इंक्लेव में उन्हें दिया, लेकिन गोविंद का परिवार आज भी किराए के मकान का किराया लकी मानकर भरता है, जहां पिता और गोविंद ने बचपन काटा था।