चुनावी साल में किसानों को लुभाने की कोशिश, खरीफ फसलों की MSP में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी करेगी मोदी सरकार



खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में आज मोदी सरकार ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी कर सकती है. आज होने वाली कैबिनेट की बैठक में 2018 -19 के लिए धान समेत अन्य ख़रीफ़ फ़सलों के समर्थन मूल्य पर मुहर लग सकती है. इस साल के बजट में मोदी सरकार ने सभी फ़सलों के समर्थन मूल्य को उसकी लागत से डेढ़ गुना करने का एलान किया था. समर्थन मूल्य बढ़ाने से सरकार के ख़ज़ाने पर 12,000 करोड़ रूपए का ख़र्च पड़ेगा. सूत्रों के मुताबिक़ कैबिनेट ख़रीफ़ मौसम की जिन 14 फ़सलों के लिए जिस समर्थन मूल्य का एलान करेगी वो इन फ़सलों को पैदा करने में लगे ख़र्चे का कम से कम डेढ़ गुना ज़रूर होगा.

14 खरीफ फसलों के प्रस्तावित मूल्य की एक्सक्लुसिव सूची पढ़ें-


  • धान- मौजूदा दाम 1550 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 1750 रुपए.

  • धान ग्रेड ए- मौजूदा दाम 1590 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 1770 रुपए.

  • ज्वार (हाइब्रिड)- मौजूदा दाम 1700 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 2430 रुपए.

  • ज्वार (मालंदी)- मौजूदा दाम 1725 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 2450 रुपए.

  • बाजरा- मौजूदा दाम 1425 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 1950 रुपए.

  • खमीर- मौजूदा दाम 1900 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 2897 रुपए.

  • मक्का- मौजूदा दाम 1425 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 1700 रुपए.

  • अरहर- मौजूदा दाम 5450 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5675 रुपए.

  • मूंग- मौजूदा दाम 5575 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 6975 रुपए.

  • उड़द- मौजूदा दाम 5400 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5600 रुपए.

  • मूंगफली- मौजूदा दाम 4450 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 4890 रुपए.

  • सूरजमुखी- मौजूदा दाम 4100 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5388 रुपए.

  • सोयाबीन- मौजूदा दाम 3050 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 3399 रुपए.

  • सीसम- मौजूदा दाम 5300 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 6249 रुपए.

  • नाइजर बीज- मौजूदा दाम 4050 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5877 रुपए.

  • कपास (मध्यम)- मौजूदा दाम 4020 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5150 रुपए.

  • कपास (लंबी)- मौजूदा दाम 4320 रुपए, प्रस्तावित मूल्य 5450 रुपए.



आपको बता दें कि प्रस्तावित मूल्य पर अगर कैबिनेट आज मुहर लगा देती है तो ये मोदी सरकार का चुनावी साल में एक बहुत बड़ा कदम होगा, जो सरकार के लिए गेम चेंजर भी साबित हो सकता है. आज तक इन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इतना बड़ा इज़ाफ़ा नहीं हुआ है.

धान के दाम में सबसे ज़्यादा बढ़ोत्तरी


सूत्रों के मुताबिक धान का समर्थन मूल्य उसके मौजूदा दाम 1550 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1750 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया जाएगा. यानि इसमें 200 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की जाएगी. सरकार ने फसलों की लागत का जो फार्मूला लगाया है इसके मुताबिक़ धान का वर्तमान समर्थन मूल्य उसकी लागत मूल्य से केवल 38 फ़ीसदी ही ज़्यादा है. ये बढ़ोत्तरी एक साल में सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी मानी जा रही है. इसके पहले यूपीए सरकार के दौरान 2008 -09 में धान के समर्थन मूल्य में 155 रूपए प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई थी.

हर साल घोषित होता है समर्थन मूल्य

ख़रीफ़ मौसम में 14 फ़सलों के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है. ख़रीफ़ फ़सलों की बुवाई से पहले हर साल जून के महीने में इसका ऐलान किया जाता है ताकि किसान उसी अनुसार फ़सल उगा सकें. इनमें धान के अलावा , जोवार , बाजरा, अरहर , उड़द , मूंग , सोयाबीन ,मूंगफली और कपास जैसी फ़सलें शामिल हैं. एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक़  इन फ़सलों में बाजरा, अरहर और उड़द को छोड़कर सभी फ़सलों का समर्थन मूल्य उनके लागत मूल्य के डेढ़ गुना से कम है.
सभी फ़सलों के बढ़ेंगे न्यूनतम समर्थन मूल्य

हालांकि सूत्रों के मुताबिक़ जिन फ़सलों का वर्तमान समर्थन मूल्य उसके लागत के डेढ़ गुना से ज़्यादा भी है उसके समर्थन मूल्य में भी बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव है. मूंग का समर्थन मूल्य फ़िलहाल 5575 रुपये क्विंटल है जो बढकर 6975 रुपये प्रति क्विंटल हो सकता है. वहीं उड़द का एमएसपी फिलहाल 5400 रुपये है जिसके 5600 रुपये प्रति क्विंटल होने के आसार हैं. अरहर दाल की क़ीमत फ़िलहाल 5450 रुपये प्रति क्विंटल है जो बढ़कर 5675 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकता है. नीति आयोग में कृषि मामलों के सदस्य रमेश चंद के मुताबिक़ , '' प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद हमारी नीति रही है कि किसानों को उनकी लागत का कम से कम डेढ़ गुना दाम ज़रूर मिले ''.

कृषि लागत और मूल्य आयोग तय करती है दाम

मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक़ सरकार की संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग हर साल ख़रीफ़ और रबी फ़सलों का लागत मूल्य तय कर उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रस्ताव सरकार को भेजती है. लागत मूल्य तय करने के लिए आयोग अलग अलग फॉर्मूले की मदद लेता है. इस साल A2 + FL के फॉर्मूले से लागत मूल्य तय किया गया है.
इस फॉर्मूले के तहत बीज़, फ़र्टिलाइजर, किटनाशक , खेतों में लगने वाले लेबर और हर तरह की मशीन ( अपना या किराए का ) पर होने वाले ख़र्चे को लागत मूल्य तय करने में शामिल किया जाता है. हालांकि लागत मूल्य तय करने को लेकर एक राय नहीं रही है. कई किसान संगठन लागत मूल्य तय करने के लिए ज़मीन के दाम या रेंट को भी शामिल करने की मांग करते रहे हैं जबकि सरकार इसे व्यावहारिक नहीं मानती है. इस मामले में अहम भूमिका निभाले वाली नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा - '' देश के अलग अलग इलाक़ों में ज़मीन की क़ीमत और रेंट अलग अलग है तो फिर ये कैसे संभव हो सकता है ".

कृषि संकट पर सरकार है निशाने पर

चुनावी साल होने के चलते अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है कि मोदी सरकार की इस पहल के पीछे मंशा क्या है .... ख़ासकर ऐसे समय में जब किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर और घिरती नज़र आयी है.