गर्भवती महिलाओं को अक्सर नसीहतें मिलती हैं कि ये न खाओ, वो न पियो। ऐसा न करो, वैसा न करो। वरना बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा। इसका कारण यह है कि जैसा खान-पान व व्यवहार मां का होगा वैसा ही असर बच्चे पर भी पड़ेगा। मुख्य तौर पर महिलाओें को उनके खान-पान पर हिदायतें दी जाती है, इसकी वजह भी है। जो भी वो खाती हैं, वो खून के जरिए, बच्चे तक पहुंच जाता है तो जैसे-जैसे वो बढ़ता है, वैसे-वैसे मां के स्वाद की आदत उसे लगती जाती है।
मां ही होती है सबसे पहली गुरू
लाखों साल से कुदरती विकास की प्रक्रिया चली आ रही है जिसे एक मां ही बेहद सुंदर तरीके से निभाती है, मां ही है जो बच्चों की परवरिश करती है, उनकी रखवाली करती है। इसलिए बच्चों को उससे ज्यादा अच्छी बातें कौन सिखा सकता है? एक औरत के लिए गर्भावस्था का समय यह सब बातें सिखाने का सबसे अच्छा समय होता है। तो आइए जानते है कौन-कौन सी बातों का होता है गर्भ में ही बच्चों पर असर।
मां के खान-पान का असर
आयरलैंड की राजधानी बेलफ़ास्ट की यूनिवर्सिटी ने लगभग 33 गर्भवती महिलाओं पर तजुर्बा किए। इन महिलाओं में से कुछ ऐसी थीं, जो लहसुन खाती थी और कुछ जो लहसुन नहीं खाती थीं। यूनिवर्सिटी का मानना है कि गर्भ के दसवें हफ्ते से ही भ्रूण, मां के खून से मिलने वाले पोषण को निगलने लगता है। यानी की उसी वक्त से मां के स्वाद के बारे में एहसास होने लगता है। हुआ भी यही जब बच्चों ने जन्म लिया तो उन बच्चों में भी उनकी माओं वाले ही लक्षण देखने को मिले। खान-पान के साथ बच्चे पर मां के व्यवहार का भी बहुत असर होता है।
आसपास की आवाजों का असर
ऑस्ट्रेलिया में फेयरी नाम की एक चिड़िया पर बेहद ही दिलचस्प रिसर्च हुई है। जिससे सामने आया है कि कोख में पल रहे बच्चों पर आसपास की बातों का भी बहुत असर होता है। शोध के मुताबिक सामने आया कि बच्चे शब्दों पर ज्यादा त्वजों देते है। मां-बाप की आवाज़ को तो बच्चे सबसे ज्यादा पहचानते हैं। इससे उनकी अपनी मात भाषा सीखने की शुरुआत होती है। मां के गर्भ में रहते हुए बच्चों पर गीत संगीत का भी असर पड़ता है। अगर माएं गर्भ के दौरान खास तरह का संगीत सुनती हैं, तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज़ को आसानी से पहचान लेते हैं।
जानवर भी देते है बच्चों को कोख में सीख
कटलफिश की ही मिसाल ले लीजिए। इस बारे में हुए एक रिसर्च में कटलफ़िश के अंडों के आस-पास केकड़ों की तस्वीरें घुमाई गई। पैदा होने पर अंडों से निकली कटलफ़िश को केकड़े ख़ास तौर पर पसंद आते देखे गए। वो इनका जमकर शिकार करती थीं। मतलब अंडे के भीतर से ही केकड़े की तस्वीरें देखकर उनका झुकाव केकड़ों की तरफ हो गया था। इसी तरह फेयरी रेन नाम कि चिड़िया अपने अंडो को सेते वक्त आवाज निकालना सिखाती है। जिससे कि वह जन्म के बाद अपने बच्चों को उनकी आवाज से पहचान सकें।
गीत संगीत का असर
मां के गर्भ में रहते हुए, बच्चों पर गीत संगीत का भी असर पड़ता है। अगर माएं गर्भ के दौरान खास तरह का संगीत सुनती हैं तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज को आसानी से पहचान लेते हैं इसलिए मां को चाहिए कि अच्छे से अच्छा, शोर शराबे से दूर वाला संगीत सुने ताकि बच्चा भी अच्छा संगीत सुनने का शौकीन बनें। संगीत के साथ साथ बच्चे स्वाद, खुशबू और कुछ खास आवाजों को पहचानना सीख जाते हैं।
खतरों का करना सिखाएं सामना
हो सके तो अच्छी-2 किताबें पढ़े, जीवन में कठिनाईओं का सामना करने वाली किताबें। जिन्हें पढ़ने से गर्भ में पल रहा बच्चा स्ट्रांग सोच वाला पैदा होगा। हाल ही में सामने आया है कि मेंढक और सैलेमैंडर के बच्चे भी जन्म से पहले ही खतरे की आहट और इससे बचने की जुगत सीख जाते हैं। बेहद खतरनाक माहौल में पैदा होने वाले सैलेमैंडर के बच्चों का बचना बेहद मुश्किल होता है इसलिए उनकी मां द्वारा अंडों में रहने के दौरान ही बाहर के माहौल से रूबरू कराया जाता हैं, जिससे जन्म के बाद वो अपनी रक्षा खुद कर पाएं।