बिहार विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। सभी राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने प्रत्याशियों को टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी इन समीकरण के साथ तालमेल बनाते हुए अपने प्रत्याशी घोषित किए है, पर इसके साथ पार्टी ने अपने परंपरागत वोटबैंक को फिर से हासिल करने के लिए जोखिम भी उठाया है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राजद के साथ मिलकर 70 सीट पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी ने सभी सीट पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। पार्टी ने सबसे ज्यादा टिकट सवर्ण, उसके बाद दलित और तीसरे नंबर पर मुस्लिम है। सवर्णों में पार्टी ने 9 ब्राहमण उम्मीदवार बनाए हैं। जबकि अनुसूचित जाति से 14 और 12 मुस्लिम उम्मीदवार हैं। ब्राहमण, दलित और मुस्लिम कांग्रेस को परंपरागत वोट रहा है। चुनाव में पार्टी इन मतदाताओं पर फोकस करेगी।
कांग्रेस बिहार चुनाव के साथ यूपी में भी राजनीतिक संदेश देना चाहती है। जाले विधानसभा सीट से मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा है। बिहार में उस्मानी को टिकट और यूपी में डॉ कफील खान की रिहाई के लिए मुहिम से साफ है कि पार्टी अब फ्रंट पर खेलना चाहती है। ताकि, मुस्लिम मतदाताओं को फिर से भरोसा जीता जा सके। हाथरस मामले में कांग्रेस का अक्रामक रुख रणनीति का हिस्सा है। पार्टी को इस पूरी मुहिम का राजनीतिक लाभ मिलता या नहीं, यह तो वक्त तय करेगा। पर पार्टी यह संदेश देने में सफल रही है कि वह दलितों के मुद्दों को लेकर अक्रामक है। जबकि ऐसे मामलों में बसपा का रुख बहुत अक्रामक नहीं रहा है। समाजवादी पार्टी के हमलों में पहले जैसी धार नहीं थी।
कांग्रेस के अंदर एक बड़ा तबका मौजूदा राजनीतिक हालात में इस तरह के जोखिम लेने के खिलाफ है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बिहार में मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट देकर भाजपा को मुद्दा दे दिया है। अभी तक प्रचार में स्थानीय मुद्दे हावी थे, पर अब जिन्ना की एंट्री हो गई है। इन नेताओं का मानना है कि पार्टी को इस तरह के निर्णय से परहेज करना चाहिए था।