भारत ने बुधवार को पाकिस्तान के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि नई दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ बातचीत के कुछ संकेत दिए हैं। इस मामले से जानकार लोगों ने बताया कि दोनों देशों के बीच फिर से बातचीत शुरू करने के लिए न तो भारत ने सीधे पाकिस्तान से संपर्क किया है और न ही किसी मध्यस्थ के जरिए से। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सलाहकार मोइद यूसुफ ने कहा था कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत करने की इच्छा जताई है।
इस मामले में हमारे सहयोगी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स को एक सरकारी सूत्र ने बताया कि 'यह काल्पनिक' है। अधिकारियों ने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत करने पर नई दिल्ली का रुख पूरी तरह से साफ रहा है और यह शर्त है कि इस्लामाबाद को आतंक और हिंसा के वातावरण के खिलाफ अहम और ठोस कदम उठाना होगा। इसके लिए पाकिस्तान को सीमा पार संचालित होने वाले आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को खत्म करने और उसके क्षेत्र में सक्रिय सैकड़ों आतंकवादियों पर शिकंजा कसने की आवश्यकता होगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिना किसी अनुकूल वातावरण के अगर कोई भी यह सुझाव देता है कि भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है, तो फिर यह न सिर्फ 'शरारत' है, बल्कि यह एक 'सपना' भी है।
अधिकारी ने कहा कि यह उतना ही अपमानजनक है, जितना उसी इंटरव्यू में साल 2014 में पेशावर में हुए आर्मी स्कूल पर आतंकवादी हमले को भारत से लिंक किया जाना। राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक नीति नियोजन पर इमरान खान के विशेष सहायक मोइद यूसुफ ने कहा था कि भारत ने पाक से बातचीत करने की इच्छा जताने के साथ ही एक संदेश भेजा है, लेकिन विवरण देने से इनकार कर दिया। हालांकि भारत के साथ बातचीत के लिए यूसुफ ने कई शर्तें रखी थीं। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक कैदियों की रिहाई, कश्मीरियों को बातचीत में एक पार्टी बनाना, क्षेत्र में प्रतिबंधों को समाप्त करना, अधिवास कानून को रद्द करना ( जो गैर-कश्मीरियों को क्षेत्र में बसने की अनुमति देता है) और मानव अधिकारों का हनन रोकना है। उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिवर्तन एक आंतरिक मामला नहीं है बल्कि यह मामला संयुक्त राष्ट्र के अधीन आता है।
पाकिस्तान पर नजर रखने वालों का कहना है कि मोइद यूसुफ के दावे जमीन पर मौजूद तथ्यों पर आपत्ति जताने के लिए किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इमरान खान का सलाहकार बनने से पहले यूसुफ पाकिस्तानी सेना और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। यूसुफ इससे पहले यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में थे, जहां पर उन्होंने भारत-पाक में शांति और कश्मीर मुद्दे के हल के हिमायती होने की छवि गढ़ी थी।