NEET Result :छोटी सी चाय की दुकान चलाकर पूरा किया बेटी को डॉक्टर बनाने का सपना

बेटियों को पढ़ाने का जज्बा कोई गुजैनी रविदासपुरम निवासी प्रेमशंकर वर्मा से सीखे। पनकी में एक छोटी सी चाय की दुकान चलाकर बड़ी बेटी का इंजीनिरिंग में प्रवेश कराया। छोटी बेटी कंचन अब मेडिकल की पढ़ाई करेगी। उसकी नीट 2020 में कैटेग्री रैंक 442 आई है।


कंचन वर्मा की ऑल इंडिया रैंक 22305 है लेकिन कैटेग्री रैंक अच्छी है। इससे उन्हें नीट की ऑल इंडिया रैंकिंग के आधार पर देश के किसी भी अच्छे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलने की पूरी उम्मीद है। कंचन बताती हैं कि वह केजीएमयू में प्रवेश लेना चाहती हैं। इस रैंक के आधार पर पूरी उम्मीद है कि यहां मेडिकल की पढ़ाई कर सकेंगी। 


डॉक्टर बनने का सपना 
कंचन बताती हैं कि शिवाजी इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। शुरू से ही डॉक्टर बनने का सपना था, इसलिए तैयारी में जुट गई। रात-दिन मेहनत की। लॉकडाउन से समय मिल गया तो रिवीजन खूब हो गया। न्यू लाइट से लगातार संपर्क बना रहा तो तैयारी अच्छी होती चली गई। हमें पूरी उम्मीद थी कि पहली बार में ही अच्छी रैंक आ जाएगी। अब हमारा डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो सकेगा। 


बहन ने भी प्रोत्साहित किया
कंचन की बड़ी बहन एनआईटी से इंजीनियरिंग कर रही हैं। कंचन बताती हैं कि उन्हें अपनी बहन से काफी प्रोत्साहन मिला। पिता और माता राय सखी वर्मा हमेशा हम लोगों की पढ़ाई के लिए फिक्रमंद रहीं। उन्हीं के आशीर्वाद से यह कामयाबी मिल सकी। 


बेटियों की पढ़ाई से समझौता नहीं
कंचन के पिता प्रेमशंकर वर्मा बताते हैं कि उन्होंने कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद बेटियों की पढ़ाई से समझौता नहीं किया। चाय की छोटी दुकान से जैसे भी घर चल सका, बेटियों को पढ़ाने से कभी पीछे नहीं हटे। वह बताते हैं कि उनके दो सहयोगियों ने पढ़ाई में आर्थिक रूप से मदद की। इसी से यह सफलता संभव हो सकी।


वालिद टेलर, बेटे ने नाम रोशन किया
मेहताब आलम के बेटे आफताब आलम को भी नीट में सफलता मिली है। उनकी रैंक 11302 है। आफताब बताते हैं कि 16 हजार तक नीट रैंक से कहीं न कहीं प्रवेश मिल जाएगा। उनकी इच्छा केजीएमयू में प्रवेश लेने की है। चौबेपुर निवासी आफताब किदवई नगर में अपनी नानी के घर रहकर पढ़ाई कर रहे थे। उनके पिता टेलर हैं और गरीबी में ही जीवनयापन होता है। आफताब ने चौबेपुर स्थित विन्यास पब्लिक स्कूल से 86 फीसदी अंक के साथ इंटर की परीक्षा पास की थी। यह उनका दूसरा प्रयास था। मां तनवीर फातिमा ने बेटे की पढ़ाई के लिए रात-दिन एक किया। आखिर दुआएं काम आईं।