मुंबई की नपुंसक पुलिस ने अर्णब को अब भेजा कारण बताओ नोटिस: अच्छे बर्ताव के लिए भरवाना चाहते हैं 10 लाख का बॉन्ड

मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी पर अपनी हालिया कार्रवाई में चैनल के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी को कारण बताओ नोटिस भेजा है। यह नोटिस पालघर लिंचिंग केस और बांद्रा में प्रवासियों की भीड़ इकट्ठा होने पर की गई ‘सांप्रदायिक टिप्पणियों’ को लेकर है।


इस बार उन्हें रविवार को शाम 4 बजे वर्ली के असिस्टेंट पुलिस कमिशनर और स्पेशल एग्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने को कहा गया है। इतना ही नहीं, इससे पहले रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी से ‘अच्छे बर्ताव’ के लिए एक बॉन्ड साइन करने को भी कहा गया था।

सीआरपीसी की धारा 108 के तहत एसीपी (वर्ली) सुधीर जंबावड़ेकर ने डिमांड की थी कि अर्णब गोस्वामी अपने अच्छे बर्ताव को सुनिश्चित करने के लिए बॉन्ड साइन करें। असिस्टेंट कमिशनर ने एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग किया था जो उन्हें संवेदनशील सामग्री को प्रकाशित किए जाने के संदेह में किसी से अच्छे व्यवहार के लिए सुरक्षा की माँग करने का अधिकार प्रदान करता है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, अर्णब गोस्वामी को कारण बताओ नोटिस भेज कर पूछा गया है कि आखिर क्यों उनसे एक साल के समय के लिए 10 लाख का बॉन्ड राशि नहीं भरवाना चाहिए, वो भी एक गारंटर के साथ जिसकी समाज में एक अच्छी खासी पहचान हो और अर्णब का बर्ताव कंट्रोल करने में सक्षम हो।

SC ने दी थी अर्णब गोस्वामी को बेल

गौरतलब है कि अभी हाल ही में पिछले बुधवार (नवंबर 11) को सुप्रीम कोर्ट में अर्णब गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताया था। इसके बाद अर्णब को रिहाई देने के लिए मुंबई पुलिस को निर्देशित किया गया था।

अर्णब गोस्वामी और दो अन्य आरोपितों को 50,000 रुपए के बांड पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया था। कोर्ट ने पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया था कि आदेश का तुरंत पालन किया जाए।

जमानत पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर हम आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं तो बर्बादी की राह पर बढ़ जाएँगे। उन्होंने यह भी कहा था कहा कि किसी की विचारधारा अलग हो सकती है और वो चैनल नहीं देखे, लेकिन संवैधानिक अदालतें अगर ऐसी आज़ादी की सुरक्षा नहीं करती हैं तो वो बर्बादी की राह पर बढ़ रही है।