कच्चे तेल के भाव आसमान छू रहे हैं। क्रूड महंगा होने से पेट्रोल-डीजल की महंगाई से अभी राहत नहीं मिलने वाली और न ही घरेलू एलपीजी की उछलती कीमतों से। इनकी कीमत में और इजाफा होने के प्रबल आसार हैं। कच्चा तेल महंगा होने से एफएमसीजी कंपनियों की लागत बढ़ेगी। डीजल की कीमतें बढ़ने से माल ढुलाई का महंगा हो गया है। खेती की लागत भी बढ़ेगी। माला भाड़ा बढ़ने से उत्पाद की लागत बढ़ेगी जो कंपनियों को कीमत बढ़ाने पर मजबूर करेगी। सबसे ज्यादा असर पेंट की कीमत पर होने की आशंका है। पेंट की कीमत में बड़ा उछाल आ सकता है।
कोरोना संकट के बाद सरकार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश महंगे क्रूड से और मुश्किल होगी। रिजर्व बैंक को महंगाई पर नियंत्रण के लिए रेपो रेट बढ़ाना पर सकता है। इससे बाजार में तरलता कम हो जाएगी। इस वजह से कंपनियों के पास कर्ज के लिए फंड कम बचेगा। यह स्थिति सुधार की रफ्तार को धीमी करेगा।
महंगा कच्चा तेल के 6 साइड इफेक्ट
1. आयत लागत बढ़ने से चालू खाते का घाटा बढ़ेगा
2. सभी तरह के कमोडिटी महंगे हो जाएंगे
3. डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर होगा
4. महंगाई बढ़ने से आरबीआई बढ़ा सकता है रेपो रेट
5. शेयर बाजार में आ सकती है गिरावट
6. शिपिंग, रेल, बस और हवाई किराया महंगा होगा
भारत क्रूड का तीसरा सबसे बड़ा आयातक
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। यह क्रूड की अपनी जरूरत के 80% हिस्से का आयात करता है। केयर रेटिंग के अनुसार, भारत 157.5 करोड़ बैरल कच्चा तेल खरीदता है। इस प्रकार अगर कच्चे तेल की कीमत में $1/बैरल की वृद्धि होती है तो यह आयात बिल को 10,000 करोड़ तक बढ़ा देता है। अगर रुपया और कमजोर होता है तो आयात बिल और तेल के दाम अधिक बढ़ जाते हैं।