राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में
बहुप्रतीक्षित सुनवाई गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई। सुप्रीम कोर्ट में
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 14
मार्च को तय की है। साथ ही सभी पक्षों को दस्तावेज जमा करने के लिए 2
हफ्ते का समय दिया है। इससे पहले गत वर्ष 5 दिसंबर को हुई सुनवाई में
सुन्नी वक्फ बोर्ड और सभी पक्षों की इस अपील को खारिज कर दिया जिसमें
उन्होंने आम चुनाव के बाद सुनवाई की दलील दी थी।
प्रधान
न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा खंडपीठ में शामिल जस्टिस अशोक भूषण
और एस.एस. नज़ीर की बेंच ने कहा कि इसे ‘पूरी तरह जमीनी विवाद’ मानकर इस
पर सुनवाई की जाएगी। उच्चतम अदालत ने कहा कि मातृभाषा में लिखी सभी चीजें
जिस पर यह सारा केस निर्भर है उन्हें इंग्लिश में रूपांतरित कर उसे दो
हफ्ते के भीतर फाइल किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार को यह
निर्देश दिए कि सभी पक्षों को वीडियो कैसेट्स की कॉपी भी दें जो हाईकोर्ट
के रिकॉर्ड्स में हिस्सा रहे थे।
यह
सुनवाई इस मायने में काफी महत्व रखती है क्योंकि इससे पहले सुन्नी वक्फ
बोर्ड और अन्य की तरफ से दायर याचिकाओं में यह मांग की गई थी कि इसे पर
सुनवाई अगले लोकसभा से पहले ना हो।
इससे
पहले पांच दिसंबर को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई
वाली बेंच ने कहा था कि वह याचिकाओं पर 8 फरवरी से अंतिम सुनवाई शुरू
करेगी। इसके साथ ही सभी पार्टियों से निश्चिम समय सीमा के भीतर अपने
दस्तावेज जमा करने को कहा था। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इस
बात पर जिरह की कि इस मामले को या तो पांच या सात सदस्यी बेंच के पास भेजा
जाना चाहिए या नहीं तो इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए 2019 तक टाल देना
चाहिए।
शीर्ष अदालत की विशेष बेंच उन
14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है जो इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ की
गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने 2:1 साल 2010 में
अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले में जमीन को तीन टुकड़ों में बांटकर इसे
सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला को देने के लिए कहा गया था।