पंजाब के अमृतसर में बहुत खूबसूरत स्थान है स्वर्ण मंदिर. जो देखने में
भी काफी खूबसूरत हैं साथ ही वहां के लंगर का खाना भी बेहद स्वादिष्ट होता
है. स्वर्ण मंदिर की खासियत है कि एक मिनट के लिए भी वहां लंगर कभी रुकता
नहीं है. एक दिन में तकरीबन 5 लाख लोगों का वहां के स्वयंसेवक शेफ बनाते
है. आज हम आपको स्वर्ण मंदिर के लंगर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बात बताएंगे.
आप अंदाजा लगाइए कि हररोज स्वर्ण मंदिर में बनने वाली चाय में लगभग
कितनी चीनी का इस्तेमाल होता होगा ? कितना खाना लगता होगा.? इन्हीं सब
बातों से जुड़ी आज हम आपको एक रिपोर्ट बताएंगे-
लाखों लोग खाते हैं लंगर
स्वर्ण मंदिर में हर दिन तीर्थयात्रियों से लेकर पर्यटकों के लिए लंगर
और चाय की व्यवस्था होती है. औसतन सप्ताह के दिन, तकरीबन 80,000 लोग लंगर
खाने आते हैं. लेकिन गुरू नानक जंयती में तकरीबन आधा मिलियन लंगर खाते हैं.
कितनी सामग्री का इस्तेमाल-
अगर आप गौर फरमाए तो हर 15 मिनट के अंदर एक नया ग्रुप मंदिर के लगंर के
लिए भोजनालय परिसर में पहुंचता है. उनकी सीटों पर दाल, सब्जी और रोटी से
भरी हुई थाली पहुंचती है. औसतन इस रसोई घर में खाना बनाने के लिए हर रोज 5
हजार किलोग्राम लकड़ी और सौ से ज्यादा एलपीजी गैस सिलेडंर का इस्तेमाल होता
है.
हजारों की संख्या में स्वयंसेवक
स्वंयसेवा के लिए स्वर्ण मंदिर में हजारों की संख्या में स्वयंसेवक होते
हैं. कुछ सेवक यहां बरसों से काम करते आ रहे हैं तो वहीं कुछ दर्शन करने
आए लोग अपनी इच्छानुसार स्वंयसेवा करते हैं. यहां तैयार होने वाले खाने को
परोसने के लिए करीब सौ स्वंयसेवक सेवा करते हैं. खाने के बाद झूठे बर्तन
धोने के लिए और रसोई घर में काम करने के लिए चार सौ से ज्यादा स्वयंसेवक
दिन रात सेवा करते है.जो लोग खुद अपनी ओर से इस रसोई घर में हाथ बंटाना
चाहते हैं उनको भी इस काम में लगाया जाता है.
20 साल के सुखप्रीत सिंह, स्वर्ण मंदिर में रोजाना भक्तों की सेवा करते
हैं. वो रोजाना डिनर में पानी देना का काम करते हैं. 18 साल के बाद से ही
वो रोजाना शाम 7 बजे से रात 2 बजे तक अपना काम बखूबी रूप से करते हैं. वो
अब सबसे बड़े स्वर्ण मंदिर में चाय वाले के नाम से जाने जाते हैं.
सुखप्रीत बताते हैं, उन्हे नहीं पता कि स्वर्ण मंदिर कब से चाय दे रहे
हैं. लेकिन इतना जानते हैं कि ब्रिटिशर्स चाय भारत लाए थे. उससे पहले हम
सिर्फ दूध का सेवन करते थे.
लंगर के मैनेजर, हरप्रीत सिंह का मानना है कि प्रति घंटे कम से कम
30,000 चाय पिलाई जाती है। सुखप्रीत एक रात पहले चाय तैयार करते थे. इसे
तैयार करना एक इंसान की बात नहीं, इसलिए सुखप्रीत 6 और दोस्तों को काम में
ले आए. प्रत्येक कड़ाही के लिए, वे 300 लीटर पानी में 30 किलोग्राम सूखे
दूध पाउडर डालते है. इस बनने में करीबी 30 मिनट का समय लगता है.
जब दूध तैयार हो जाता है तो सुखप्रीत के दो दोस्त 50 किलो चीनी लगाकर
चाय का स्वाद बराबर करते हैं. और एक दिन में करीब 600 किलो चीनी का
इस्तेमाल होता है.