सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को वैध मानते हुए कहा कि शादी के बाद भी
वर या वधू दोनों में से किसी की उम्र विवाह योग्य नहीं है तो वे लिव इन
रिलेशनशिप में साथ रह सकते हैं, इससे उनकी शादी पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी युवक की उम्र शादी योग्य यानि 21 साल
नहीं हुई है और उसकी शादी कर दी गई है तो वह अपनी पत्नी के साथ लिव इन रह
सकता है। इतना ही नहीं यह लड़का-लड़की पर निर्भर है कि जब उनकी उम्र शादी
योग्य हो जाए तो वे फिर से विवाह करना चाहते है या ऐसे ही इस रिश्ते को
निभाना चाहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथी चुनने का अधिकार
युवक-युवती से कोई नहीं छीन सकता, चाहे फिर वह कोर्ट हो, कोई संस्था या
संगठन ही क्यों न हो। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का उल्लेख करते हुए कोर्ट
ने कहा कि अदालत का काम है कि वह निष्पक्ष निर्णय ले न कि एक मां की तरह
भावनाओं में बहे और न ही एक पिता की तरह अंहकारी बने।
ये है पूरा मामला
अप्रैल 2017 को केरल की एक 19 वर्षीय युवती की शादी 20 साल के युवक के साथ हुई। शादी योग्य होने में लड़के की उम्र एक साल कम थी। इस पर लड़की के पिता ने दूल्हे पर अपहरण का केस दर्ज करवा दिया। केस केरल हाईकोर्ट पहुंचे तो अदालत ने शादी को रद्द करते हुए लड़की को वापिस पिता के पास भेज दिया। वर पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीड़ित पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन पर अहम फैसला सुनाया और केरल हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोनों की शादी हिंदू धर्म के मुताबिक हुई है इसलिए इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में लिव इन ही इसका विकल्प है।
ये है पूरा मामला
अप्रैल 2017 को केरल की एक 19 वर्षीय युवती की शादी 20 साल के युवक के साथ हुई। शादी योग्य होने में लड़के की उम्र एक साल कम थी। इस पर लड़की के पिता ने दूल्हे पर अपहरण का केस दर्ज करवा दिया। केस केरल हाईकोर्ट पहुंचे तो अदालत ने शादी को रद्द करते हुए लड़की को वापिस पिता के पास भेज दिया। वर पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीड़ित पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन पर अहम फैसला सुनाया और केरल हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोनों की शादी हिंदू धर्म के मुताबिक हुई है इसलिए इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में लिव इन ही इसका विकल्प है।