रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष गुरुवार को
हुई सुनवाई में एक बार फिर तारीख मिल गई। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के
वकील राजीव धवन ने पांच सदस्यीय बेंच में जस्टिस यूयू ललित के शामिल होने
पर सवाल उठाए। राजीव धवन ने कहा कि जस्टिस धवन 1994 में कल्याण सिंह के
वकील रह चुके हैं। राजीव धवन के सवाल उठाने के बाद चीफ जस्टिस ने बाकी जजों
के साथ मशविरा किया, जिसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस मामले से
अलग कर लिया।
कौन है जस्टिस उदय उमेश ललित
वकीलों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट के छठे
ऐसे वकील हैं जो सीधे उच्चतम न्यायालय के जज नियुक्त किए गए। 13 अगस्त 2014
को यूयू ललित ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यभार संभाला था।
पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा के नेतृत्व वाले जजों के कोलेजियम ने उन्हें नामित
किया। 22 नवंबर 2022 को यूयू ललित इस पद से रिटायर होंगे, इससे पहले यूयू
ललित 74 दिन के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और वकालत की शुरुआत
जस्टिस यूयू ललित के पिता जस्टिस यू.आर. ललित दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे
और उससे पहले वह सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुके थे, जिन्हें बाद में
बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया। अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते
हुए यूयू ललित ने 1983 बतौर वकील प्रैक्टिस शुरू की। साल 1986 में उन्होंने
सुप्रीम कोर्ट में वकालत की शुरुआत की।
5 जजों की संवैधानिक बेंच
दरअसल प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यीय
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन
वी रमण, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़
शामिल थे, पांच सदस्यीय पीठ में ना केवल मौजूदा प्रधान न्यायाधीश हैं बल्कि
इसमें चार अन्य न्यायाधीश जो शामिल थे वे भविष्य में सीजेआई बन सकते हैं।
न्यायमूर्ति गोगोई के उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बोबडे होंगे। उनके बाद
न्यायमूर्ति रमण, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की बारी आएगी।
मस्जिद, इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं
शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने गत वर्ष 27 सितंबर को 2:1 के बहुमत
से मामले को शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई उस टिप्पणी को
पुनर्विचार के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया
था जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें
अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़
भूमि के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के 2:1 के
बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गयी हैं। उच्च
न्यायालय ने इस फैसले में विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा
और राम लला विराजमान के बीच बराबर- बराबर बांटने का आदेश दिया था।