नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (राकांपा) में अपनी स्थिति को मजबूत करने के देश के नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी दिलाई, जिसमें भारत के क्षेत्र अपना बताया। इसके बाद भी उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। अब उन पर दो पदों में से एक को छोड़ने की मांग उठने लगी है। पीएम ओली एनसीपी के दो चेयरपर्सन में से एक हैं जिसको वह अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी पुष्पा कमल दहल के साथ साझा करते हैं, जिन्हें डी गुर्रे प्रचंड नाम से जाना जाता है।
पीएम ओली ने शुक्रवार को एनसीपी की स्थायी समिति की बैठक से नदारद रहे, हालांकि पार्टी पैनल की यह बैठक उनके आधिकारिक निवास पर हो रही थी। काठमांडू मीडिया में आई खबरों के अनुसार, पीएम ओली ने पैनल को संदेश भेजा था कि वह बाद में उनके साथ जुड़ेंगे लेकिन वे नहीं आए। स्थायी समिति की बैठक शुरू में 7 मई होने थी, लेकिन 44-सदस्यीय पैनल के समर्थन में ओली ने इसे रोक दिया।
दिल्ली में काठमांडू पर नजर रखने वालों का कहना है कि ओली को उम्मीद थी कि इस महीने संसद के माध्यम से नए राजनीतिक मानचित्र के जरिए वे खुद को एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में पेश करेंगे, जो अपने विशालकाय पड़ोसी को भीतर से दबाव में ढालने के लिए खड़ा हो। लेकिन जब पीएम ओली गुरुवार को स्थायी समिति की पहली बैठक में शामिल हुए तब ऐसा नहीं हुआ । नेपाल मीडिया के अनुसार प्रचंड ने उनकी खूब आलोचना की।
द काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर के एक समझौते के लिए प्रचंड ने खेद व्यक्त किया था जिसमें ओली के पांच साल के लिए सरकार चलाने को लेकर सहमति थी जबकि वह पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व कर रहे थे। पोस्ट के अनुसार, प्रचंड ने कहा, "या तो हमें तरीके से भाग लेना है या हमें तरीके बदलने की जरूरत है ... चूँकि अलग होना संभव नहीं है, इसलिए हमें अपने तरीकों में बदलाव करना होगा।"