पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प और दोनों देशों में बढ़े तनाव के बीच दवाइयों के दाम बढ़ सकते हैं। पिछले चार दिनों में ही दवा उद्योग के लिए चीन से आने वाले कच्चे माल 30 पर्सेंट तक महंगे हो गए हैं। उत्तराखंड में दवा कंपनियों के मालिकों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इसका असर आने वाले दिनों में आम लोगों पर पड़ सकता है, उन्हें दवाइयों के लिए अधिक खर्च करना पड़ सकता है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में दवाओं की सैकड़ों कंपनियां हैं। इन दो प्रदेशों में ही देश के कुल दवा उत्पादन का करीब आधा हिस्सा है। इनके लिए अधिकतर कच्चा माल चीन से ही आता है। देश में दवाओं के लिए एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) का अधिकांश हिस्सा चीन से ही आता है, क्योंकि चीनी एपीआई की कीमत अमेरिका और यूरोप के मुकाबले बेहद कम है।
हरिद्वार में एक बड़े दवा उद्योगपति ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर कहा, ''गलवान घाटी में हिंसक झड़प और चाइना के सामानों के बहिष्कार को लेकर शुरू हुए आंदोलन के बीच दवा उद्योग के लिए कच्चे माल के सप्लायर्स ने कीमत 30 पर्सेंट तक बढ़ा दी है। वे इसके पीछे मौजूदा हालात को जिम्मेदार बता रहे हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि वे मौके का फायदा उठा रहे हैं।''
उन्होंने कहा, ''देश में 10-12 बड़े सप्लायर्स का ग्रुप है। ये चीन से कच्चा माल और सॉल्ट मंगाते हैं और देशभर में उत्पादकों को बेचते हैं। आपूर्ति पर उनका पूरा नियंत्रण है और हम उनके आगे बेबस हैं। हमें अधिक कीमत पर कच्चे माल खरीदने होंगे, कोई विकल्प नहीं है। इससे आम आदमियों के लिए दवाइयों की कीमत बढ़ जाएगी।''
उद्योगपति ने यह भी कहा कि सप्लायर्स अडवांस पेमेंट मांग रहे हैं। इनमें से कई अब जमाखोरी कर रहे हैं और अडवांस भी मांग रहे हैं। हो सकता है कि वे अगले कुछ दिनों में कोई नई शर्त लेकर आ जाएं ताकि मौके का फायदा उठा सकें। हरिद्वार के ही एक और दवा उद्योगपति ने भी इन्हीं बातों को दोहराते हुए कहा, ''अभी कच्चे माल के लिए हमारे पास चीन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।''
उन्होंने कहा, ''करीब 80 फीसदी कच्चा माल चीन से आयात होता है। हम यूरोप और अमेरिका से माल आयात नहीं कर सकते हैं, क्योंकि चीन के मुकाबले उनकी कीमत लगभग दोगुनी है।'' उन्होंने कहा कि पैरासिटामोल जैसी बेसिक दवा के लिए भी मैटेरियल चीन से ही आ रहा है।
दवा उत्पादक ने कहा, ''केवल पैरासिटामोल नहीं, बल्कि लगभग सभी बड़े एंटीबायोटिक्स और विटामिन्स चीन से ही कम कीमत में आते हैं। जिससे हम कम कीमत पर दवा बनाकर बेच सकते हैं। हमारे पास चीन से आयात करने के अलावा अभी कोई विकल्प नहीं है। देश में एपीआई की बहुत कम इकाइयां हैं, जोकि चीन की तरह कम कीमत में मैटेरियल दे सकती हैं।''