इन तीन छलावों से FATF को चकमा देना चाहता है पाकिस्तान, जानिए ग्रे लिस्ट से निकलना क्यों मुश्किल

एंटी टेरर फाइनेंसिंग निगरानी समूह की ओर से दिए एक्शन प्लान को पूरा करने में एक बार फिर नाकाम रही पाकिस्तान की इमरान खान सरकार फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए छटपटा रही है। कुछ छलावों के बाद इमरान खान दुनिया से कह रहे हैं कि टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ उठाए गए कदमों के इनाम के रूप में इस लिस्ट से बाहर कर दिया जाए और काली सूची में जाने से बचाया जाए। 


पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हाल ही में यह कहकर आशावाद का इजहार किया कि उनका देश जल्द ही ग्रे लिस्ट से बाहर आ जाएगा। पाकिस्तान के सातवें सबसे बड़े शहर मुल्तान में एक समूह के सामने कुरैशी ने कहा कि इस्लामाबाद ने FATF की ओर से किए गए प्रस्तावों में से 80 फीसदी को पूरा कर लिया है और जल्द ही पाकिस्तान वॉइट लिस्ट में होगा। 

पाकिस्तान पर नजर बनाए रखने वाले नई दिल्ली के आतंक रोधी अधिकारी कहते हैं कि इस्लामाबाद लॉबिंग फर्म लिनडेन स्ट्रैटजीज पर बहुत भरोसा कर रहा है, जो उसकी इस कहानी को बेच सके कि पाकिस्तान इसकी शर्तों को पूरा करने की कोशिश में है। इसका कैंपेन 39 सदस्य देशों में से कम से कम 12 को प्रभावित करने पर केंद्रित है।

पाकिस्तान मुख्य रूप से तीन तर्क सामने रख रहा है। पहला, इमरान खान सरकार लश्कर-ए-तैयबा के कुछ आतंकवादियों की गिरफ्तारी दिखाकर साबित करना चाहती है कि उसने आतंकवाद पर प्रहार किया है। दूसरा, पाकिस्तान उम्मीद कर रहा है कि वह आतंकवादी समूहों से जुड़ी कुछ संस्थाओं के खिलाफ एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्शन को हाइलाइट कर पाएगा। तीसरा, पाकिस्तान यह भी भरोसा है कि वह यह रेखांकित कर सकेगा कि 27 पॉइंट एक्शन प्लान में से 21 को लागू किया है और बचे हुए छह पॉइंट्स के लिए कोशिश कर रहा है। 

एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने कहा, ''ये दलीलें निश्चित तौर पर तथ्यों की बाजीगरी है... एक धोखा है। इसकी बहुत कम संभावना है कि कोई इन पर विश्वास करेगा।'' उदहारण के तौर पर यह इस बात को भूल रहा है कि उसे मई 2020 की यूएन मॉनिटरिंग टीम की रिपोर्ट में शामिल 6,500 पाकिस्तानी आंतकवादियों के खिलाफ ऐक्शन लेना है, जिन्हें पाकिस्तान का उद्देश्य पूरा करने के लिए अफगानिस्तान में तैनात किया गया है। 

पाकिस्तान ने पिछले महीने एशिया प्रशांत संयुक्त समूह की बैठक को प्रभावित करने की कोशिश की थी, जिसमें उसने आतंकवादियों के चुनिंदा समूहों के खिलाफ कार्रवाई को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया था। लेकिन प्रक्रिया से अवगत कूटनीतिज्ञों ने पाकिस्तान को यह कहकर घेरा कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से घोषित आतंकवादियों पर अभियोजन टेरर फाइनेंसिंग के लिए नहीं है। 

इसका एक अहम उदाहरण लाहौर में लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के तीन सदस्यों के खिलाफ फैसला है, जिनमें उन्हें मामूली सजा सुनाई गई। लश्कर के सह-संस्थापक हाफीज सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की को महज 18 महीनों की जेल की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में लाहौर हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका की ओर से घोषित आतंकवादी जिसके सिर पर 20 लाख डॉलर का इनाम था, ने पाकिस्तानी 20 हजार रुपया जुर्माना चुकाया या नहीं।

पाकिस्तान को एशिया पसिफिक-जॉइंट ग्रुप की सितंबर की बैठक में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। यह बताया गया कि इस्लामाबाद एफएटीएफ द्वारा दिए गए एक्शन प्लान में बताए गए 8 संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है। अधिकारियों ने संसद की ओर से पास गए तीन कानूनी के प्रभावीपन पर भी सवाल उठाए।