MSP के नाम पर पंजाब के अनपढ़ किसानो का भूख हड़ताल, इधर सरकार ने अकेले पंजाब से आधी धान खरीदी

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानो ने सोमवार (दिसंबर 21, 2020) से सभी धरना स्थलों पर 24 घंटे की क्रमिक भूख हड़ताल करने का ऐलान किया है।


किसानों ने कहा है कि वो 25-27 दिसंबर तक हरियाणा के सभी टोल नाकों को मुफ्त कर देंगे और दो दिनों तक हरियाणा के नाकों पर टोल नहीं वसूलने दिया जाएगा। जबकि, पंजाब में पहले से ही कई नाकों पर टोल की वसूली नहीं हो रही है।

ऐसे समय में, जब पंजाब के किसानों ने आरोप लगाया कि नए कृषि कानून एमएसपी (न्यनतम समर्थन मूल्य) को समाप्त कर देंगे, केंद्र सरकार ने घोषित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का भुगतान करते हुए कृषि उत्पादों की खरीद जारी रखी है। खरीफ मार्केटिंग सीजन 2020-21 के दौरान, भारत सरकार ने देश भर के किसानों से धान, कपास, दलहन, तिलहन, कपास आदि विभिन्न फसलों को खरीदा, जिससे करोड़ों किसानों को लाभ पहुँचा है।

पंजाब राज्य में विरोध के बावजूद, खरीफ 2020-21 सीजन के लिए धान की खरीद पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड, तेलंगाना, उत्तराखंड, तमिलनाडु, चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर, केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा में सुचारू रूप से चल रही है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, 19 दिसंबर को धान की 412.91 लाख मीट्रिक टन (LMT) खरीद की गई थी, जबकि पिछले साल यह 337.74 LMT थी। इस प्रकार, कोरोनो वायरस महामारी और तथाकथित किसान आंदोलनों के बावजूद इस साल एमएसपी के तहत धान खरीद 22.25% बढ़ी है।

इस वर्ष भारत में 412.91 लाख मीट्रिक टन की खरीद में से, अकेले पंजाब राज्य से खरीद 202.77 लाख मीट्रिक टन थी। जिसका मतलब है, कुल खरीद का लगभग आधा (49.10%), पंजाब से लिया गया।

एमएसपी की कुल 77957.83 करोड़ रुपए की खरीद से लगभग 48.56 लाख किसानों को लाभ हुआ है।

इसके अलावा, मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश से 51 लाख मैट्रिक टन दालों की खरीद की गई। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल राज्यों के लिए कोपरा के 1.23 LMT की खरीद के लिए स्वीकृति भी दी गई।

मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत दलहन, तिलहन और खोपरा (नारियल की सफ़ेद भाग) की खरीद के प्रस्ताव अन्य राज्यों से प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद दिए जा रहे हैं। अगर संबंधित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में तय की गई फसल अवधि के दौरान उन फसलों के बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे जाते हैं, ऐसे में भी इन फसलों की खरीद के लिए पंजीकृत किसानों से सीधे वर्ष 2020-21 के लिए तय एमएसपी पर ही खरीदा जा सकेगा।

दिसंबर 19, 2020 तक, सरकार ने अपनी नोडल एजेंसियों के माध्यम से मूँग, उड़द, मूँगफली और सोयाबीन के 1,95,899.38 मीट्रिक टन की खरीद की है, जिसका एमएसपी मूल्य 1050.08 करोड़ रूपए है। ये सीधे तौर पर तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा और राजस्थान में 1,08,310 किसानों को लाभान्वित करते हैं।

इसी प्रकार, कर्नाटक और तमिलनाडु में 3961 किसानों को लाभान्वित करते हुए, 52.40 करोड़ रुपए के एमएसपी मूल्य वाले 5,089 मीट्रिक टन खोपरा खरीदे गए हैं। यहाँ पर ध्यान देने की जरूरत है कि पिछले वर्ष खोपरा की खरीद केवल 293.34 मीट्रिक टन थी।

सीजन के दौरान, 16,65,871 करोड़ रुपए मूल्य के 57,83,122 कपास के बीज की खरीद की गई, जिससे 11,24,252 किसानों को लाभ हुआ। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और कर्नाटक में कपास की खरीदारी की गई है।

कॉन्ग्रेस ने किसानों को झूठ बोलकर उकसाया कि एमएसपी को खत्म कर दिया जाएगा

ध्यान देने की बात यह है कि विपक्षी दल, विशेष रूप से कॉन्ग्रेस पंजाब में किसानों को नए कृषि कानूनों के सम्बन्ध में झूठ बोलकर लगातार गुमराह कर रही है। अन्य बातों के अलावा, कॉन्ग्रेस किसानों को उकसा रही है कि केंद्र सरकार अपने नए कृषि कानूनों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को समाप्त कर देगी। जो कि एमएसपी के अनुसार खरीफ फसलों की उपरोक्त खरीद के आँकड़ों के अनुसार एक स्पष्ट झूठ नजर आता है।

कॉन्ग्रेस के ही प्रपंच का नतीजा है कि किसानों ने मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके में आंदोलन किया, यह मानते हुए कि नए कानूनों का मतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को समाप्त कर दिया जाना!

मंडियाँ रहेंगी, MSP रहेगा अप्रभावित: मोदी सरकार

आंदोलन के बीच ही केंद्र सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि वे ना तो मंडियों को खत्म कर रहे हैं और ना ही एमएसपी को निरस्त कर रहे हैं। यानी, विपक्ष के ये दोनों दावे झूठ हैं। वास्तव में, कॉन्ग्रेस ने अपने 2019 के चुनावी घोषणापत्र में, एपीएमसी अधिनियम को पूरी तरह से समाप्त करने का वादा किया था। हालाँकि, मोदी सरकार ने केवल एपीएमसी अधिनियम में संशोधन किया है।

मोदी सरकार ने एपीएमसी अधिनियम को पूरी तरह से निरस्त नहीं किया है। नए कृषि कानून किसानों को राज्य की मंडियों के अलावा अपनी उपज बेचने के लिए एक अतिरिक्त जरिया प्रदान करते हैं। नए विधेयकों में प्रावधान राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए किसी भी ‘बाजार शुल्क या उपकर या लेवी’ से एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडियों के परिसर के बाहर किए गए लेनदेन की छूट देते हैं। यानी, किसान इस कानून के जरिए अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊँचे दामों पर बेच पाएँगे।

पीएम नरेंद्र मोदी, सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने बार-बार कहा है कि एमएसपी जारी रहेगा। हालाँकि, राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस बार-बार एक ही झूठ को दोहरा रहे हैं।