प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि भारत का स्वच्छता मिशन दुनिया का
सबसे बड़ा जन आंदोलन बन चुका है। हमें अभी और आगे बढ़ना है और स्वच्छ भारत
बनाकर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देनी है। पीएम ने राष्ट्रपति भवन में
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित
करते हुए कहा कि चार दिन के इस सम्मेलन के बाद हम सब इस निष्कर्ष पर पहुंचे
हैं कि, विश्व को स्वच्छ बनाने के लिए 4पी आवश्यक हैं। ये 4पी वाले चार
मंत्र राजनीतिक नेतृत्व, सार्वजनिक वित्त पोषण, लोगों की भागीदारी और लोगों
की हिस्सेदारी हैं।
मोदी ने कहा कि समृद्ध दर्शन, पुरातन प्रेरणा, आधुनिक तकनीक और प्रभावी
कार्यक्रमों के सहारे आज भारत टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने की तरफ
तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारी सरकार स्वच्छता के साथ ही पोषण पर भी समान
रूप से बल दे रही है । प्रधानमंत्री ने कहा कि आज वह सुन और देख रहे हैं कि
स्वच्छ भारत अभियान ने देश के लोगों का मिजाज बदल दिया है, किस तरह से
भारत के गांवों में बीमारियां कम हुई हैं, इलाज पर होने वाला खर्च कम हुआ
है। इससे उन्हें बहुत संतोष मिलता है।
मोदी ने स्वच्छता के क्षेत्र में उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि 4
साल पहले खुले में शौच करने वाली वैश्विक आबादी का 60प्रतिशत हिस्सा भारत
में था, आज यह 20प्रतिशत से भी कम हो चुका है। उन्होंने कहा कि पिछले चार
वर्षों में सिर्फ शौचालय ही नहीं बने, गांव-शहर खुले में शौच से मुक्त
:ओडीएफ: ही नहीं हुए बल्कि 90प्रतिशते से अधिक शौचालयों का नियमित उपयोग भी
हो रहा है। पीएम ने कहा कि जनभावना का ही परिणाम है कि साल 2014 से पहले
ग्रामीण स्वच्छता का दायरा जो लगभग 38 प्रतिशत था, वह आज 94 प्रतिशत हो
चुका है।
पीएम ने कहा कि आज मुझे गर्व है कि गांधी जी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए
सवा सौ करोड़ भारतवासियों ने स्वच्छ भारत अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा जन
आंदोलन बना दिया है। अगर उन्होंने गांधी जी को, उनके विचारों को, इतनी
गहराई से नहीं समझा होता, तो सरकार की प्राथमिकताओं में भी स्वच्छता अभियान
कभी नहीं आ पाता। मोदी ने कहा कि उन्हें स्वच्छता के संदर्भ में बापू से
ही प्रेरणी मिली, और उन्हीं के मार्गदर्शन से स्वच्छ भारत अभियान भी शुरू
हुआ । उन्होंने कहा कि अगर आप बारीकी से गौर करेंगे, मनन करेंगे, तो
पाएंगे कि जब हम गंदगी को दूर नहीं करते तो वही अस्वच्छता हमारे अंदर उन
परिस्थितियों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति पैदा करने लगती है।